pankesh.bamotra

My thoughts on self-discovery.

ज़िंदगी के सफर में हमें अक्सर इस कशमकश से गुज्ज़रना पढता है कि ज़िंदगी की सच्चाई आख़िर कहाँ ढूंढी जाये। धार्मिक पुस्तकें उठा कर देखेंगे तो पाएंगे कि उनमें सच्च और सच्चाई का ज़िकर जरूर है लेकिन हक़ीक़त में धर्म को मानने वाले सच्चाई से अकसर पल्ला फेर लेते हैं। दूसरी तरफ है विज्ञान – किसी भी विज्ञान की किताब में आपको वास्तविक चीज़ों का उल्लेख तो मिल जायेगा लेकिन विज्ञान हर सच्चाई को सुलझाने में नाकाम है। तो ऐसे में इंसान सचाई कहाँ ढूंढें? असल में सच्चाई का मार्ग न ही धार्मिक है न ही वैज्ञानिक क्योंकि एक का काम विधान एवं व्यवस्था को बनाए रखना है तो दुसरे का इंसान की प्रजाति को और शक्तिशाली बनाना।

सच्च और सच्च का रास्ता अकेला है जो एक इंसान अकेला तो तय कर सकता है लेकिन धर्म / सामाज और विज्ञान दोनों ही कभी उस एक रस्ते पे आपके साथ ज्यादा दूर तक नहीं चल सकते। शायद ये ही वज़ह है कि जिन महान आत्माओं को हम याद करते करते हैं उनका रास्ता कठिन और संघर्षपूर्वक रहा। आत्मज्ञान भी कभी किसी को झुण्ड में नहीं मिला। लेकिन एक बात जो गौर करनी वाली है कि हर ऐसा “सत्य का ग्यानी” इंसान खुद एक धर्म बन जाता है जो दूसरों को अपना सत्य समझाने की कोशिश करता है और पूरा चक्र फिरसे शुरू हो जाता जाता है।

शायद यही एकलौता सत्य है कि हर इंसान को सत्य का सफर अकेले ही तय करना है।